डर कर कांटो से तू फूल से दूर रह गया।
महरूम ख़ुश्बू से मगर रूह तेरी रह गई।।
इन्तज़ार में तेरे मन्ज़िल राह तकती रह गई।
तू ना आया ऐ मुसाफ़िर रौशनी भी ढह गई।।
इधर राह पर तू अकेले मुश्किलों से लड़ न सका।
उधर मन्ज़िल तेरे बग़ैर यक ओ तन्हा रह गई।।
इन्तज़ार में तेरे मन्ज़िल राह तकती रह गई।
तू ना आया ऐ मुसाफ़िर रौशनी भी ढह गई।।
तू क़दम बढ़ाने को हर दम सोचता रहा।
और मन्ज़िल तेरी दुआएं रब से करती रह गई।।
इन्तज़ार में तेरे मन्ज़िल राह तकती रह गई।
तू ना आया ऐ मुसाफ़िर रौशनी भी ढह गई।।
तू ने बढ़ाया न क़दम तू बैठा ही रहा।
और मन्ज़िल अपने पास तुझ को बुलाती रह गई।।
इन्तज़ार में तेरे मन्ज़िल राह तकती रह गई।
तू ना आया ऐ मुसाफ़िर रौशनी भी ढह गई।।
वक़्त रहते ही उठाले अपना तू पहला क़दम।
ऐ रज़ा फिर न कहना मन्ज़िल तो दूर रह गई।।
इन्तज़ार में तेरे मन्ज़िल राह तकती रह गई।
तू ना आया ऐ मुसाफ़िर रौशनी भी ढह गई।।
Very Nice post, Loved your fresh lines and talent of showcasing the depth of life.